चोर जोर जोर से रोया फिर जोर से हंसा क्यूं? - बेताल पच्चीसी - 14वी हिंदी कहानी।

चोर जोर जोर से रोया फिर जोर से हंसा क्यूं? - बेताल पच्चीसी - 14वी हिंदी कहानी।

Betal Pachisi 14teen [Hindi Story]


बेताल पच्चीसी - Betal Pachisi 14teen [Hindi Story]
बेताल पच्चीसी - Betal Pachisi 14teen [Hindi Story]

प्रिय पाठकों।

आप सभी का स्वागत हैं मेरे ब्लॉग allhindistory.in पर और आप पढ़ रहे है बेताल पच्चीसी की कड़ी की 14वी हिंदी कहानी "चोर जोर जोर से रोया फिर जोर से हंसा क्यूं ?" बाकी सभी कहानियों की तरह यह कहानी भी बहुत ही शिक्षाप्रद हैं। इस विक्रम बेताल की कड़ी में राजा विक्रमादित्य चुपचाप बेताल को योगी के पास ले जाना चाहते है, लेकिन बेताल भी ऐसी कहानी सुनाता है की, कहानी के अंत में राजा विक्रमादित्य को बोलने पर मजबूर कर देता है। और राजा का मोन भंग होते ही बेताल फिर से श्मशान में जाकर पेड़ से लटक जाता है। तो चलिए जानते है की इस कहानी में बेताल राजा का मोन केसे भंग करता है और पढ़ते है -- "Vikram Betal 14th Stories In Hindi"

बेताल पच्चीसी - Betal Pachisi 14teen [Hindi Story]


पुराने समय की बात है। अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में एक साहूकार रहता था। जिसका नाम रत्नदत्त था। जिसके रत्नवती नाम की एक कन्या थी। वह बहुत ही रूपवती और सुंदर थी। वह हमेशा पुरुष के भेस में रहती थी और कभी भी किसी से भी ब्याह करना नही चाहती थी। जिससे उसका पिता बड़ा दु:खी था।

इसी बीच नगर में चोरों का आतंक मच गया और खूब चोरियां होने लगी। प्रजा भी बहुत दुखी हो गयी। बहुत कोशिशों के बावजूद जब चोर पकड़ में न आया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकला। एक दिन रात को जब राजा भेष बदलकर घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया। राजा ने चुपचाप दबे पांव उस आदमी का पीछा किया। और चोर को जैसे ही पकड़ा तो चोर ने राजा को भी चोर समझ लिया और चोर ने कहा, "तब तो तुम भी मेरे साथी हो। आओ, मेरे घर चलो।"


दोनो चोर के घर पहुँचे। राजा को बिठा कर चोर किसी काम के लिए चला गया। इसी बीच उसकी दासी आयी और बोली, "तुम यहाँ क्यों आये हो? चोर तुम्हें मार डालेगा। भाग जाओ।"


राजा ने ऐसा ही किया। फिर उसने फौज लेकर चोर का घर घेर लिया। जब चोर ने ये देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया। दोनों में खूब लड़ाई हुई। अन्त में चोर हार गया। राजा उसे पकड़कर राजधानी में लाया और उसे सूली पर लटकाने का हुक्म दे दिया।


संयोग से रत्नवती ने उस चोर को देखा तो वह उस पर मोहित हो गयी। और अपने पिता से बोली, "मैं इसके साथ ब्याह करूँगी, नहीं तो मर जाऊँगी।
पर राजा रत्नवती की बात नही मानी और चोर को सूली पर लटका दिया। सूली पर लटकने से पहले चोर पहले तो बहुत रोया, फिर खूब हँसा। रत्नवती वहाँ पहुँच गयी और चोर के सिर को लेकर सती होने को चिता में बैठ गयी। उसी समय देवी ने आकाशवाणी की, "मैं तेरी पतिभक्ति से प्रसन्न हूँ। जो चाहे सो वर माँगो।"


रत्नवती ने कहा, "मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। सो वर दीजिए, कि उनसे सौ पुत्र हों।"


देवी प्रकट होकर बोलीं, "यही होगा। और कुछ माँगो।"


वह बोली, "मेरे पति जीवित हो जायें।"


देवी ने उसे जीवित कर दिया। दोनों का विवाह हो गया। राजा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने चोर को अपना सेनापति बना लिया।


इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने पूछा, ‘हे राजन्, यह बताओ कि सूली पर लटकने से पहले चोर क्यों तो ज़ोर-ज़ोर से रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?"


राजा ने कहा, "रोया तो इसलिए कि वह राजा रत्नदत्त का कुछ भी भला न कर सकेगा। हँसा इसलिए कि रत्नवती बड़े-बड़े राजाओं और धनिकों को छोड़कर उस पर मुग्ध होकर मरने को तैयार हो गयी। स्त्री के मन की गति को कोई नहीं समझ सकता।"  


इतना सुनकर बेताल गायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। 
राजा फिर वहाँ गया और उसे लेकर चला तो रास्ते में उसने यह चोरी की वस्तु का मालिक चोर नही होता - बेताल पच्चीसी - 15वी कहानी सुनाई।

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तो आज की विक्रम बेताल की कहानी में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ पढ़ते रहिए allhindistory.in पर विक्रम बेताल की हिंदी कहानियां

प्रिय पाठको अगर आपने अभी तक बेताल पच्चीसी [betal Pachisi] कड़ी की पिछली 13 वी कहानी नही पढ़ी है तो वो भी पढ़ सकते हैं। 👇👇
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