पापी कौन ? - बेताल पच्चीसी - पहली कहानी.
Papi koun ? Baital Pachhisi Frist Hindi Story.
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पापी कौन ? - बेताल पच्चीसी - पहली कहानी. |
प्रिय पाठकों। आप सभी का स्वागत हैं मेरे ब्लॉग allhindistory.in पर और आप पढ़ रहे है बेताल पच्चीसी सीरीज की पहली हिंदी कहानी "पापी कौन ?" कहानी एक बहुत ही शिक्षाप्रद कहानी हैं। इस विक्रम बेताल की कड़ी में राजा विक्रमादित्य चुपचाप बेताल को एक योगी के पास ले जाना चाहते है, लेकिन बेताल भी ऐसी कहानी सुनाता है की, कहानी के अंत में राजा विक्रमादित्य को बोलने पर मजबूर कर देता है। और राजा का मोन भंग होते ही बेताल फिर से श्मशान में जाकर पेड़ से लटक जाता है। तो चलिए जानते है की इस कहानी में बेताल राजा का मोन केसे भंग करता है और पढ़ते है -- "Vikram Betal [Betal Pachisi] 1st Stories In Hindi" Vikram Betal - Betal Pachisi 1st [Hindi Stories ] |
वो मन्दिर में दर्शन करके बाहर आये तो देखते हैं कि तालाब के किनारे एक राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है। दीवान का लड़का तो वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, पर राजकुमार से रहा नहीं गया।
वह राजकुमारी की तरफ आगे बढ़ा। राजकुमारी ने उसकी ओर देखा तो राजकुमार उस पर मोहित हो गया। राजकुमारी भी उसकी तरफ़ देखती रही। फिर उसने कुछ इशारा किया जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगाया और अपनी सखियों के साथ चली गयी। उसके जाने पर राजकुमार निराश होकर अपने मित्र के पास आया और सब हाल सुनाकर बोला, “मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। पर मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न ठिकाना। वह मुझे कैसे मिलेगी?” दीवान के लड़के ने कहा, “राजकुमार, आप इतना घबरायें नहीं।
वह सब कुछ बता गयी है। आपको पता नही चला। ”राजकुमार ने पूछा, “कैसे?” वह बोला, “उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया तब उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहनेवाली हूँ। दाँत से कुतरा तो उसका मतलब था। मैं दंतबाट राजा की बेटी हूँ। पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है। और छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गये हो।” इतना सुनना था कि राजकुमार खुशी से फूल उठा। बोला, “अब मुझे कर्नाटक देश में ले चलो।” दोनों मित्र वहाँ से चल दिये। घूमते-फिरते, सैर करते, दोनों कई दिन बाद वहाँ पहुँचे।
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राजा के महल के पास गये तो एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली। उसके पास जाकर दोनों घोड़ों से उतरे और उस बुढ़िया के पास जाकर बोले, “माई, हम दूर देश के सौदागर हैं। हमारा सामान पीछे आ रहा है। हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो।”उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुनकर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ पड़ी।
बोली, “बेटा, तुम्हारा घर है। जब तक आपका जी करे तब तक, रहो।”दोनों वहीं ठहर गये। दीवान के बेटे ने उससे पूछा, “माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तुम्हारी गुज़र कैसे होती है?”बुढ़िया ने जवाब दिया, “बेटा, मेरा एक बेटा है जो राजा के यह नौकरी करता है। मैं राजा की बेटी पह्मावती की धाय थी।
बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहती हूँ। राजा खाने-पीने को दे देता है। दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल में जाती हूँ।” राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा, “माई, कल तुम वहाँ जाओ तो राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।” अगले दिन जब बुढ़िया राजमहल गयी तो उसने राजकुमार का सन्देशा उसे दे दिया। संदेशा सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होंकर हाथों में चन्दन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, “मेरे घर से निकल जा।” बुढ़िया ने घर आकर सब हाल राजकुमार को कह सुनाया।
राजकुमार हक्का-बक्का रह गया। तब उसके मित्र ने कहा, “राजकुमार, आप घबरायें नहीं, उसकी बातों को समझने की कोशिश करे। उसने दसों उँगलियाँ सफ़ेद चन्दन में मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि, अभी दस रोज़ चाँदनी के हैं। उनके बीतने पर मैं अँधेरी रात में मिलूँगी।” दस दिन के बाद बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को ख़बर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उँगलियाँ डुबोकर उसके मुँह पर मारीं और कहा, “भाग यहाँ से।” बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया।
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दीवान के लड़के ने समझाया, “इसमें हैरान होने की क्या बात है? उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। तीन दिन और ठहरो।” तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहाँ पहुँची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पच्छिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। सुनकर दीवान का लड़का बोला, “मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस खिड़की की राह बुलाया है। ”मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा।
समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार बाँधे। दो पहर रात बीतने पर वह महल में जा पहुँचा और खिड़की में से होकर अन्दर पहुँच गया।
राजकुमारी वहाँ तैयार खड़ी थी। वह उसे महल के भीतर ले गयी। अन्दर के हाल देखकर राजकुमार की आँखें खुल गयीं। एक-से-एक बढ़कर चीजें थीं। रात-भर राजकुमार राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया कि राजकुमारी ने राजकुमार को छिपा दिया और रात होने पर फिर बाहर निकाल लिया। इस तरह कई दिन बीत गये। अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आयी। उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा। उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया। बोला, “वह मेरा बड़ा प्यारा दोस्त हैं बड़ा चतुर है।
उसकी होशियारी ही से तो तुम मुझे मिल पाई हो।”राजकुमारी ने कहा, “मैं उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन बनवाती हूँ। तुम उसे खिलाकर, तसल्ली देकर लौट आना।”खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुँचा। वे महीने भर से मिले नहीं थे। राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल सुनाकर कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी हैं, तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है।
दीवान का लड़का सोच में पड़ गया। उसने कहा, “यह तुमने अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गयी कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में ज़हर मिलाकर भेजा है। यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाकर कुत्ते के आगे डाल दिया।
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लड्डू खाते ही कुत्ता मर गया। राजकुमार को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा, “ऐसी स्त्री से भगवान् बचाये! मैं अब उसके पास नहीं जाऊँगा।”दीवान का बेटा बोला, “नहीं, अब ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे घर ले चलें। आज रात को तुम वहाँ जाओ। जब राजकुमारी सो जाये तो उसकी बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।राजकुमार ने ऐसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा उसे साथ लेकर, योगी का भेस बना कर, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम ये गहने लेकर बाज़ार में बेच आओ।
अगर आपको कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उसे यहाँ ले आना। राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को गहने दिखाऐ। गहने देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो राजकुमार ने कह दिया कि ये मेरे गुरु ने मुझे दिये हैं। तो गुरु को भी पकड़वा लिया गया।
सब राजा के सामने पहुँचे। राजा ने पूछा, “योगी महाराज, ये गहने आपको कहाँ से मिले?” योगी बने दीवान के बेटे ने कहा, “महाराज, मैं श्मशान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि तभी डाकिनी आयी। मैंने उसके गहने उतार लिये और उसकी बायीं जाँघ में त्रिशूल मारकर निशान बना दिया।” इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बायीं जाँघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है।
रानी देखा, तो निशान था। राजा को बड़ा दु:ख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, “महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड है?” योगी ने जवाब दिया, “राजन्, ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहनेवाले से कोई खोटा काम हो जाये तो उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।”
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यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छोड़ने का आदेश दिया। राजकुमार और दीवान का बेटा तो उसकी ताक में बैठे ही थे। राजकुमारी को अकेली पाकर साथ ले अपने नगर में लौट आये और आनंद से रहने लगे। इतनी बात सुनाकर बेताल बोला, “राजन्, अब आप यह बताओ कि पाप किसको लगा है?”राजा ने कहा, “पाप तो राजा को लगा। दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया। कोतवाल ने राजा को कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया।
राजा ने पाप किया, जो बिना विचारे उसे देश-निकाला दे दिया।” राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर से उड़कर उसी पेड़ पर जा लटका। राजा वापस गया और बेताल को लेकर चल दिया। बेताल बोला, “राजन्, सुनो, आपको एक कहानी [ पति कौन ? बेताल पच्चीसी - दूसरी कहानी ] और सुनाता हूँ।
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तो आज की विक्रम बेताल की कहानी में इतना ही फिर मिलते है नई कहानी के साथ पढ़ते रहिए allhindistory.in पर विक्रम बेताल की हिंदी कहानियां।
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