नारी यौन शोषण की पौराणिक कथा।

नारी यौन शोषण की पौराणिक कथा।

Mythology of female sexual abuse.


नारी यौन शोषण की पौराणिक कथा।
नारी यौन शोषण की पौराणिक कथा।


प्रिय पाठकों 

हमारी आज की कथा को हम प्रेम कथा तो नही कह सकते। क्युकी ये कथा ये दर्शाती है की पौराणिक काल में भी नारी सुरक्षित नही थी। उस पर हमेशा से ही आदमी का दबदबा रहा ही फिर चाहे वो पिता हो या भाई हो या फिर पति हो। इस कहानी में भी आपको पाराणिक काल में नारी के यौन शोषण के बारे में पढ़ने को मिलेगा। लेकिन यह एक पौराणिक कहानी होने के नाते हमने इस कहानी को इसी श्रेणी में रखने का फैसला किया है। 


तो दोस्तो पौराणिक प्रेम कथाओं की सीरीज में आज की कहानी हैं "नारी यौन शोषण की पौराणिक कथा" पौराणिक प्रेम कथाएं भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और वे हमारी संस्कृति, नैतिकता और राष्ट्रीय धार्मिक भावनाओं को प्रतिष्ठित करती हैं। इन पौराणिक प्रेम कथाओं का इतिहास बहुत पुराना है और इन्हें लोग पीढ़ी से पीढ़ी तक आदि रचनाओं और पौराणिक कथाओं के रूप में पढ़ते आए हैं। इन कथाओं में प्रेम के विभिन्न पहलुओं, रोमांचक घटनाओं, नायिकाओं और नायकों के चरित्र विकास के माध्यम से विभिन्न संदेश और सिद्धांतों की प्रस्तुति की गई है।


जिसमें से कुछ प्रसिद्ध पौराणिक प्रेम कथाएं जिसे आप यहां "पौराणिक कथाओं का महा संग्रह" से पढ़ सकते हैं। इसमें सभी प्रमुख पौराणिक प्रेम कथाओं के उल्लेख की सूची हैं। इसके अलावा भी बहुत सारी प्रेम कथाएं हैं जो भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध हैं। ये कथाएं विभिन्न पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त होती हैं और अलग-अलग प्रेम कहानियों को आधार बनाती हैं। तो चलिए शुरू करते हैं आज की प्रेम कथा।


नारी यौन शोषण की पौराणिक कथा।


Mythology of female sexual abuse.



प्रिय पाठकों। 
हमारे समाज में बुराइयां सभी युगों में ही रही हैं। ऐसा कोई भी युग नहीं जो बुराई से वंचित हैं। खासकर सभी युगों में नारियों पर किसी न किसी प्रकार का अत्याचार होता रहा है। और इसका जीता जागता सबूत हमारा धर्म ग्रंथ रामायण और महाभारत है। आज भी हमारे समाज में हर रोज नारियों का शोषण हो रहा है। हमारे धर्मग्रंथों में भी नारी के यौन शोषण से जुड़ी कई कथाओं का वर्णन मिलता हैं। जिसमे से एक कथा यह भी प्रमुख है। "ययाति पुत्री माधवी का यौन शोषण"। तो आइये जानते हैं नारी के यौन शोषण की पौराणिक कथा के बारे में।


भारतीय शास्त्र हमेशा से ही पारदर्शी और निष्पक्ष रहा है। उस समय के लेखकों ने समाज में व्याप्त बुराइयों, कुप्रथाओं आदि को छुपाने की अपेक्षा सदैव उजागर व स्पष्ट रूप से सामने लाने का हमेशा से ही प्रयास किया है। चंद्रवंश के महान शासक राजा ययाति की पुत्री माधवी से जुड़ी इस कथा का उल्लेख महाभारत के "उद्योग पर्व" में वर्णित है। यह कथा है नहुष कुल में जन्मी माधवी की। माधवी राजपुत्री होने पर भी उसके पिता ने ही उसे कई लोगों से सम्बन्ध बनाने को विवश कर दिया।


कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र का एक गालव नामका शिष्य था। जो बहुत ही गरीब था। शिक्षा पूरी होने के बाद विश्वामित्र ने उसके गरीबी के कारण उससे गुरु दक्षिणा लेने से इन्कार कर दिया। परन्तु गालव को यह सब अच्छा नहीं लगा और वो विश्वामित्र से गुरु दक्षिणा मांगने की जिद करने लगा। गालव की जिद से नाराज़ होकर विश्वामित्र ने उससे 800 श्याम-कर्ण घोड़े मांग लिए जिसका उस समय में मिलना अत्यंत ही दुर्लभ था।


गुरु की आज्ञा अनुसार गालव आश्रम से घोड़े की खोज में निकल पड़ा। गालव सबसे पहले सहायता हेतु अपने मित्र गरुड़ के पास गया। गरुड़ ने गालव से कहा की हमें प्रतिष्ठानपुर के महाराज ययाति के पास चलना चाहिए। वही हमारी सहायता कर सकते हैं। महाराज ययाति उन दिनों सबसे सम्मानजनक राजा माने जाते थे। गालव और गरुड़ राजा ययाति के पास पहुंचे और उनको सारा हाल कह सुनाया। राजा ययाति गरुड़ की बात सुनकर प्रसन्न हुए परन्तु उस समय उनकी स्थिति वैसी नहीं थी जैसा गरुड़ समझते थे। कई राजसूय और अश्वमेध यज्ञ करने के कारण राजा का राजकोष खाली हो चुका था। लेकिन कुछ समय विचार करने के बाद ययाति ने अपनी त्रैलोक्य सुन्दरी पुत्री माधवी को समर्पित करते हुए गालव से कहा कि हे ऋषि कुमार मेरी यह पुत्री दिव्य गुणों से सुशोभित है। मेरी पुत्री को यह वरदान प्राप्त है की, वह चक्रवर्ती सम्राट को जन्म देगी और जन्म के पश्चात पुनः चिरकुमारी हो जाएगी। इसलिए इसे अपने साथ ले जाइये। परन्तु आप से प्रार्थना है की अपना कार्य पूर्ण करने के पश्चात आप मेरी कन्या मुझे लौटा देंगे।


ययाति के इतना कहते ही गावल ने सोचा की ऐसी सर्वगुण संपन्न एवं सुन्दरी के बदले कोई भी राजा अपना राज्य तक दे सकता है। फिर आठ सौ श्यामकर्ण अश्वों क्या है। माधवी को संग लेकर गरुड़ और गालव सर्वप्रथम अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुँचे और उन्हें अपनी सारी बात बताई। तब राजा हर्यश्व ने कहा की इस समय तो मेरे पास श्यामकर्ण अश्वों की संख्या दो सौ ही है। हर्यश्व ने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए गालव और गरुड़ को यह सलाह दिया कि आपको मेरे ही समान अन्य राजाओं से भी माधवी के बदले में वैसे श्यामकर्ण अश्वों की प्राप्ति का उपाय करना होगा। मैं अपने दो सौ अश्वों को देकर बदले में माधवी से केवल एक पुत्रोत्पत्ति की प्रार्थना करूँगा। दूसरा कोई चारा न होने के कारण गालव और गरुड़ ने अयोध्यापति हर्यश्व की बात मान ली और माधवी को अयोध्या में छोड़ दिया। यथा समय राजा हर्यश्व के संयोग से माधवी ने वसुमना नामक पुत्र को जन्म दिया। जो बाद में चलकर अयोध्या के राजवंश में परम प्रसिद्ध हुआ।


उसके बाद गालव और गरुड़ काशि राज दिवोदास के दरबार में पहुँचे। गालव और गरुड़ के अनुरोध पर वह भी अपने दो सौ श्यामकर्ण अश्वों को देकर माधवी जैसी सुन्दरी से पुत्र प्राप्त करने के लोभ को रोक नहीं सका। यहाँ भी नियत समय पर माधवी के संयोग से काशीराज दिवोदास ने प्रतर्दन नामक पुत्र की प्राप्ति की। जो बाद में काशी राज्य का पुनरुद्धारक ही नहीं, परम्परागत शत्रुओं का विध्वंसक भी हुआ।


इसके उपरांत गालव और माधवी, पक्षिराज गरुड़ के संग भोजराज उशीनर के यहाँ पहुँचे। गालव और गरुड़ की प्रार्थना पर राजा उशीनर ने भी त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी के संयोग से एक पुत्र प्राप्त कर अपने उन दुर्लभ अश्वों को उन्हें सौंप दिया। भोजराज का यही तेजस्वी पुत्र बाद में शिवि के नाम से विख्यात हुआ। जिसकी दान-शीलता की अमर कहानी आज भी पुराणों में वर्णित है।


तीसरे पुत्र की उत्पत्ति के बाद भी माधवी का रूप-यौवन पूर्ववत बना रहा। गालव को अपनी गुरु-दक्षिणा देने के लिए अब दो सौ अश्व ही शेष थे। गालव द्वारा विश्वामित्र से प्राप्त की गयी अवधि समाप्त होने वाला था एवं गालव और गरुड़ को यह ज्ञात हो चुका था कि धरती पर इन छह सौ श्याम कर्ण अश्वों के सिवा कोई भी ऐसा अश्व नहीं है। अन्ततः छह सौ अश्वों और त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी तथा गरुड़ को संग लेकर वे गुरु विश्वामित्र के पास पहुँचे और शेष दो सौ अश्वों की प्राप्ति में असमर्थता प्रकट करते हुए कहा की गुरुवर आपकी आज्ञा से इस भूमण्डल पर प्राप्त छह सौ श्यामकर्ण अश्वों को मैं ले आया हूँ। जिन्हें आप कृपा कर स्वीकार करें। अब इस धरती पर ऐसा एक भी अश्व नहीं बचा है। अतः मेरी प्रार्थना है कि शेष दो सौ अश्वों के शुल्क के रूप में आप दिव्यांगना माधवी को अंगीकार करें। गालव की प्रार्थना का समर्थन गरुड़ ने भी किया।


विश्वामित्र ने अपने प्रिय शिष्य की प्रार्थना स्वीकार कर ली और माधवी के संयोग से अन्य राजाओं की भाँति उन्होंने भी एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्त हुआ । जो कालांतर में अष्टक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनकी राजधानी का सारा कार्यभार ग्रहण किया और माधवी के बदले राजाओं से प्राप्त उन छह सौ दुर्लभ श्यामकर्ण अश्वों का भी वही स्वामी हुआ। इन चारों पुत्रों की उत्पत्ति के बाद माधवी ने गालव को गुरु के ऋण से मुक्त करा दिया। फिर वह अपने पिता राजा ययाति के पास वापस चली गई। उसके अनन्त रूप और यौवन में चार पुत्रों की उत्पत्ति के बाद भी कोई कमी नहीं हुई थी। अपने इन चारों यशस्वी पुत्रों की उत्पत्ति के बाद जब वह पिता के घर वापस आयी, तो पिता ने उसका स्वयंवर करने का विचार प्रकट किया। किन्तु माधवी ने किसी अन्य पति को वरण करने की अनिच्छा प्रकट करते हुऐ तपोवन का मार्ग ग्रहण कर लिया।


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