एकादशी व्रत की शुरुआत कब और कैसे करें?
Sampuran ekadasi vrat Katha.
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एकादशी व्रत की शुरुआत कब और कैसे करें? |
प्रिय पाठकों
आप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग all Hindi Story पर। जहा पर में आपको हमेशा से ही किसी भी टॉपिक को बहुत ही साटीकता से समझाने की कोशिश करता हु। ताकि आपको उस टॉपिक पर कोई भी भ्रम ना हो। तो आज का हमारा टॉपिक है "Sampuran ekadasi vrat Katha" एकादशी व्रत को हिंदू धर्म में बहुत ही बड़ा गुणकारी और सभी पापो का विनाशक बताया गया है। परंतु कई लोग ये व्रत तो करते है। लेकिन इसकी सही जानकारी नहीं होने के कारण और सही विधि विधान नही होने के कारण सही फल नही मिल पाता और कभी कभी उल्टा फल मिलने की भी संभावना हो जाती हैं। इसलिए आज में आपको एकादशी व्रत करने की सटीक जानकारी All Hindi Story के माध्यम से आप तक पहुंचा रहा हूं।
अगर आप भी एकादशी का व्रत करने की सोच रहे हैं और आपके मन में सवाल है कि एकादशी व्रत की शुरुआत कब और केसे करे? एकादशी व्रत के नियम क्या है? एकादशी व्रत के दिन क्या करें क्या ना करें? एकादशी व्रत क्यों करना चाहिए? एकादशी व्रत के दिन क्या खाएं क्या नहीं खाएं? निर्जला एकादशी कैसे करें? एकादशी व्रत की पौराणिक मान्यता क्या है? एकादशी व्रत करने से क्या फल मिलता है? अगर आपके मन में यह सब प्रश्न है। तो आप बिल्कुल सही जगह पर हैं क्योंकि आज आपको इस ब्लॉग के माध्यम से आपके मन के सभी प्रश्न का उत्तर मिलने वाला है। तो अपने प्रश्नों के सभी जवाब जानने के लिए इस ब्लॉग को पूरा जरूर पढ़ें। और यह ब्लॉग पढ़ने के बाद अगर आपको जानकारी पसंद आए तो, अपने फ्रेंड्स एवं परिवार वालों के साथ शेयर जरूर करें और, ऐसी ही रोचक जानकारी जानने के लिए इस ब्लॉग को फॉलो जरूर करें। तो आइए जानते हैं। एकादशी व्रत की शुरुआत कब और कैसे करें?
धन्यवाद......
एकादशी व्रत की शुरुआत कब और कैसे करें?
Sampuran ekadasi vrat Katha.
एकादशी क्या है?
हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। हिंदू पञ्चाङ्ग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, 1 मास में 2 एकादशी आती है। पहली शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में। उसी प्रकार 1 साल में 24 एकादशियां आती है। और अगर साल में अधिक मास हो तो उस साल में कुल एकादशी 26 हो जाती हैं । और इन दोनों प्रकार की एकादशियों का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत को रखने से और विधिवत पूजा करने से जीवन में सभी पापों, समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है. All Hindi Story इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
एकादशी व्रत की शुरुआत कब, कहां और कैसे हुई?
एकादशी व्रत करने से पहले ये जानना जरूरी हैं की, एकादशी की उत्पति कहा से हुई। पुराणों में सभी व्रतों का अपना अपना स्थान है पर एकादशी का व्रत बड़े से बड़े पापो का नाश करने वाला और पुण्यकारी बताया गया है। पूरे साल में 24 एकादशी आती है इनमें आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष की विष्णुशयनी या (देवशयनी) कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधनी और मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी तिथि का बड़ा महत्व है। इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। और इस एकादशी से ही एकादशी व्रत की शुरुआत करनी चाहिए। क्युकी ऎसी मान्यता है कि इसी तिथि से एकादशी व्रत की शुरुआत हुई थी।
कौन थी एकादशी, केसे हुआ इसका जन्म?
एकादशी के अगर जन्म की बात करे तो शास्त्रों के अनुसार एकादशी का जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी का जन्म हुआ था। सतयुग में इसी दिन एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था। इस देवी ने भगवान विष्णु के प्राण बचाए जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें एकादशी नाम दिया।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी के दिन सच्चे तन मन से व्रत रखकर भगवान विष्णु के संग एकादशी देवी की पूजा करता है। उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान पाने का हकदार बन जाता है।
उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा
इस संदर्भ में पौराणिक कथा है कि, एक समय मुर नामक असुर से युद्ध करते हुए जब भगवान विष्णु थक गए तब बद्रीकाश्रम में गुफा में जाकर विश्राम करने लगे। असुर मुर भगवान विष्णु का पीछा करता हुए बद्रीकाश्रम पहुंच गया। निद्रा में लीन भगवान को मुर ने मारना चाहा तभी विष्णु भगवान के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और इस देवी ने मुर का वध कर दिया।
देवी के कार्य से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने कहा कि देवी तुम्हारा जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को हुआ है इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। आज से प्रत्येक एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी। जो भक्त एकादशी का व्रत रखेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को एकादशी देवी का जन्म हुआ था, इसलिए सभी एकादशी में इसका बड़ा महत्व है। एकादशी देवी विष्णु की माया से प्रकट हुई थी। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे श्रद्धा भाव से उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखता वह मोहमाया के प्रभाव से मुक्त हो जाता है, और उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है। छल-कपट की भावना उसमें कम हो जाती है और अपने पुण्य के प्रभाव से व्यक्ति विष्णु लोक में स्थान पाने योग्य बन जाता है।
12 महीने की सभी एकादशियों के नाम क्या है?
हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे साल भर में 12 महीने होते हैं और हर महीने में दो पक्ष होता है और हर पक्ष में एक-एक दिन एकादशी की तिथि होती है. इसलिए 1 साल में 24 एकादशी के व्रत होते हैं. आपको बता दें कि इन 24 एकादशी तिथियों की अपनी अलग-अलग महत्ता है. और किसी साल में अगर अधिकमास (पुरुषोत्तम मास) की एकादशी को मिलाया जाय तो कुल छब्बीस एकादशी होती हैं।
12 महीने की 26 एकादशियों के नाम
माह के नाम एवम एकादशी के नाम :-
01. चैत्र कृष्ण पक्ष पापमोचनी एकादशी
02. चैत्र शुक्ल पक्ष कामदा एकादशी
03. वैशाख कृष्ण पक्ष वरूथनी एकादशी
04. वैशाख शुक्ल पक्ष मोहिनी एकादशी
05. ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अपरा एकादशी
06. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष निर्जला एकादशी
07. आषाढ़ कृष्ण पक्ष योगिनी एकादशी
08. आषाढ़ शुक्ल पक्ष विष्णुशयनी एकादशी
09. श्रावण कृष्ण पक्ष कामिका एकादशी
10. श्रावण शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी
11. भाद्रपद कृष्ण पक्ष अजा एकादशी
12. भाद्रपद शुक्ल पक्ष पद्मा एकादशी
13. आश्विन कृष्ण पक्ष इन्दिरा एकादशी
14. अश्विन शुक्ल पक्ष पापांकुशा एकादशी
15. कार्तिक कृष्ण पक्ष रम्भा एकादशी
16. कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रबोधिनी एकादशी
17. मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष उत्पन्ना एकादशी
18. मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष मोक्षदा एकादशी
19. पौष कृष्ण पक्ष सफला एकादशी
20. पौष शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी
21. माघ कृष्ण पक्ष षटतिला एकादशी
22. माघ शुक्ल पक्ष जया एकादशी
23. फाल्गुन कृष्ण पक्ष विजया एकादशी
24. फाल्गुन शुक्ल पक्ष आमलकी एकादशी
25. पुरुषोत्तम कृष्ण पक्ष कमला एकादशी
26. पुरूषोत्तम शुक्ल पक्ष कामदा एकादशी
एकादशी का व्रत कौन से महीने से चालू करना चाहिए?
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है और इसी एकादशी के दिन से एकादशी व्रत का आरंभ करना सबसे उत्तम माना गया है. जो भक्त एकादशी का व्रत पूरे वर्ष करना चाहते हैं, उन्हें मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी से व्रत की शुरुआत करनी चाहिए
एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना पड़ता हैं। इस दिन मांस, मदिरा, कांदा (प्याज), मसूर की दाल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन व आम के पत्ते लेकर ( पहले दिन ही तोड़कर रखे ) चबा लें और उँगली से कंठ सुथरा कर लें, एकादशी के दिन वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह सब सम्भव नही हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें व पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें। प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूँगा और न ही किसी का मन दुखाऊँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा।'
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मन्त्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाएँ। भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।
यदि भूलवश किसी निन्दक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा माँग लेना चाहिए। एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए। न नही अधिक बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।
इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। केला, आम, दाख (अंगूर), बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, एवम दान दक्षिणा देना चाहिए। क्रोध नहीं करते हुए मधुर सुवचन बोलने चाहिए।
उत्पन्न एकादशी व्रत विधि
जो लोग यह एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्हें एकादशी के दिन प्रातः उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर भगवान विष्णु एवं देवी एकादशी की पूजा करनी चाहिए। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या पूजन के बाद फलाहार चाहिए। परनिंदा, छल-कपट, लालच, द्वेष से भावना मन में भी न लाएं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात ही स्वयं भोजन करें।
एकादशी व्रत के नियम क्या है?
एकादशी व्रत करने वाले लोगों को दशमी यानी एकादशी से एक दिन पहले के दिन से कुछ जरूरी नियमों को मानना पड़ता है. दशमी के दिन से ही श्रद्धालुओं को मांस-मछली, प्याज, मसूर की दाल और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. दशमी और एकादशी दोनों दिन लोगों को भोग-विलास से दूर पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
बहुत सारे लोग एकादशी का व्रत करते हैं क्योंकि उनका मानना है इस व्रत से आपके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं साथ ही आपको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है पर इसे करने के बहुत से नियम होते हैं। जिसका पालन करना जरूरी होता हैं।
और अगर आप इन नियमों का ध्यान नहीं रखते हैं और पालन नहीं करते हैं तो इससे आपको उल्टा फल मिल सकता है तो आज हम आपको बताएंगे कि अगर आप एकादशी व्रत कर रहे हैं तो आप कौन कौन से नियमो का पालन करके एकादशी व्रत को सफलतापूर्वक पूरी कर सकते हैं।
1. इस दिन आपको अगली रात्रि से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए , जो लोग विवाहित होते हैं उन लोगों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मन में गंदा ख्याल तक नही आने दे।
2. आपको इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए और नित्य कर्म से निवृत्त होकर नहा धोकर विष्णु भगवान माता लक्ष्मी के साथ साथ एकादशी की पूजा पाठ करनी चाहिए।
3. यदि आपने एकादशी का व्रत रखा है तो आपको अपने काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर काबू रखना चाहिए।
4. आपको इस दिन किसी के बारे में भी बुरा नहीं सोचना चाहिए, ना ही अपने मन में बुरे ख्याल लाने चाहिए। अपने दिल और दिमाग को बिल्कुल फ्रेश रखे।
5. आपको 1 दिन पहले से ही मांस, मदिरा, प्यास, लहसुन, मसूर दाल और तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए, जिससे मन की चंचलता समाप्त हो जायेगी क्योंकि यह इस व्रत का नियम होता है।
6. इस दिन आपको ब्राह्मणों और गरीबों और अनाथों को दान देना चाहिए, एवम भोजन कराना चाहिए। क्योंकि इससे आपको ज्यादा पुण्य की प्राप्ति होती है।
7. एकादशी वाले दिन किसी भी जीव मात्र को कष्ट पहुंचना एवम वृक्ष से पत्ता तोड़ना मना होता है इसलिए आपको इस दिन पेड़ की दातुन नहीं करनी चाहिए, ना ही किसी वृक्ष के पत्तों को तोड़ना चाहिए, अगर पत्ता अपने आप गिर गया हो तो आप उसे उठा सकते हैं अन्यथा आप इस दिन वृक्षों को ना छुए।
8. आप उस दिन मंजन का उपयोग नहीं करके पानी से कुल्ला कर लेना चाहिए।
9. इस दिन आपको हाथ में गंगाजल लेकर इस व्रत का प्रण लेना चाहिए और पूरे दिन रात भजन कीर्तन करना करेंगे एवम मन को साफ और पवित्र रखेंगे।
10. यदि आपने एकादशी का व्रत रखा है तो आपको इस दिन अहंकार नहीं करना चाहिए, ना ही ऐसे व्यक्तियों का संग करना चाहिए जो कुटिल स्वभाव के हो।
11. अगर आप एकादशी का व्रत रख रहे हैं तो आपको इस दिन घर में झाड़ू नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि इससे चींटी और सूक्ष्मजीव की मृत्यु का डर बना रहता है क्योंकि इस दिन किसी भी जीव मात्र की मृत्यु आपके हाथ से होना बहुत बड़ा पाप माना जाता है।
12. आपको इस दिन अपने बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए, क्योंकि यह अशुभ होता है।
13. इस दिन आपको ज्यादा किसी से बात नहीं करनी चाहिए और भगवान के ध्यान और भजन में लीन रहना चाहिए।
14. आपको इस दिन किसी से भी लिया हुआ अन्न नही खाना चाहिए, यह नियम दशमी से लागू हो जाता जो द्वादशी पर समाप्त होता है।
15. आपको इस दिन सभी खाने की वस्तुओं में वस्तुओं में तुलसीदल मिलाना चाहिए और भगवान को भोग लगाने के बाद ही आपको किसी चीज को खाना चाहिए।
16. एकादशी व्रत में आपको आम, अंगूर, पिस्ता इन फलाहारों का सेवन करना चाहिए, आपको बार बार किसी चीज को नहीं खाना चाहिए, आपको एक बार ही फलाहार करना चाहिए।
17. अगर आपने एकादशी का व्रत रखा है तो आपको अपने शरीर पर कोई भी केमिकल युक्त प्रोडक्ट नहीं लगाना चाहिए, जैसे साबुन, तैल, फेस वाच, ब्यूटी क्रीम, पाउडर इत्यादि आपको उस दिन सादा रहना चाहिए।
18. इस दिन आपको अपनी इंद्रियों पर काबू रखना चाहिए और अपनी वाणी पर भी संयम रखना चाहिए।
19. आपको इस दिन गाजर, गोभी, शलजम, पालक इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि व्रतधारी इस दिन इन चीजों को नहीं खाते हैं।
20. आपको एकादशी वाले दिन चावल नहीं बनाने चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि यदि आपने गलती से भी चावल बना लिए तो आप चावल नही बल्कि कीड़ो मकोड़ों को खाते हैं।
21. यदि आपने एकादशी का व्रत रखा है तो उस दिन आपको अपने बालों को बांधना नहीं चाहिए, ना ही उनमें तेल डालना चाहिए।
22. आपको उस दिन अपने लिए देसी घी में ही खाना बनाना चाहिए, क्योंकि सरसों का तेल या कोई दूसरा तेल एकादशी व्रत में वर्जित होता है।
23. अगर आपने एकादशी का व्रत रखा है तो आपको इस दिन तला भुना मसालेदार खाना छोड़कर मीठा भोजन करना चाहिए।
24. इस दिन आपको गहरे और काले रंग के कपड़ों को नहीं पहनना चाहिए बल्कि आपको हल्के रंगों के कपड़ों का चुनाव करना चाहिए।
25. आपको विष्णु भगवान की पूजा करते हमेशा मंत्र चंदन या तुलसी की माला से ही जापना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना शुभ होता है।
एकादशी व्रत की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं
- घर के मंदिर में दीप आऊ अगरबती प्रज्वलित करें
- भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें
- भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें
- अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें
- भगवान की आरती करें
- भगवान को भोग लगाएं
- इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.
एकादशी के दिन क्या नहीं करना चाहिए ?
- लकड़ी से दातुन न करें।
- स्त्री-प्रसंग (स्त्री-समागम) नहीं करना चाहिए।
- बाल, नाख़ून काटने से बचना चाहिए।
- एकादशी पर बैंगन और सेमफली नहीं खानी चाहिए।
- मांस, शराब या किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करें।
- चावल का सेवन भूल कर भी न करें।
- दो बार भोजन न करें।
एकादशी व्रत का समय क्या है?
एकादशी का व्रत हमेशा एकादशी के दिन सुबह 5 बजे से शुरू होता है और एकादशी का पूरा दिन और वापिस पूरी रात की बाद द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद समाप्त होता है । एकादशी आमतौर पर स्थानीय सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक 24 घंटे का उपवास रखा जाता है।
एकादशी व्रत खोलने के लिए मुझे क्या खाना चाहिए?
इस पवित्र दिन पर, भक्त एकादशी व्रत करते हैं और चने और दाल, शहद, कुछ मसालों और सभी मांस और तामसिक भोजन का उपयोग सख्त वर्जित होता है। वे लहसुन और प्याज जैसी जड़ों से बना कोई तामसिक भोजन भी नहीं कर सकते। वे अगली सुबह दूध, शहद, चीनी और आटा चढ़ाने के बाद व्रत तोड़ सकते हैं
एकादशी व्रत मे क्या नहीं खाना चाहिए?
एकादशी व्रत के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। मान्यता यह है कि एकादशी के दिन पानी की अधिक मात्रा वाले खाद्य पदार्थों को नहीं खाना चाहिए क्योंकि पानी का गुण अस्थिरता से जुड़ा होता है. चावल की खेती के दौरान पानी ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है और चंद्रमा भी पानी को आकर्षित करता है. अगर आप व्रत रखते हैं तो और चावल खाते हैं तो चंद्रमा की किरणें उसके मन पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। जिससे मन चंचल हो जाता है। ऐसे में व्यक्ति के लिए व्रत पूरा करना कठिन हो सकता है.
वैज्ञानिक मान्यता, Scientific Reason.
इस बात का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, चावल को खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है, इससे मन विचलित और चंचल होने लगता है. मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है.
धार्मिक कारण
माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था, इसके बाद उनके शरीर का अंश धरती माता के अंदर समा गया, मान्यता है कि जिस दिन महर्षि का शरीर धरती में समा गया था, उस दिन एकादशी थी. कहा जाता है कि महर्षि मेधा ने चावल और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिया, यही वजह कि चावल और जौ को जीव मानते हैं इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाते. मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त के सेवन करने जैसा माना जाता
क्या एकादशी के दिन पानी पी सकते हैं?
जो भक्तगण एकादशी के दिन कठोर उपवास रखते हैं, जिसे अगले दिन सूर्योदय के ठीक बाद तोड़ते हैं। वो सभी एकादशी ( केवल निर्जला एकादशी को छोड़कर) अपनी यथा शक्ति के अनुसार उपवास पानी के साथ या उसके बिना, या पानी और फल के साथ, या केवल फल के साथ किया जा सकता है।
एकादशी के दिन शाम को क्या करना चाहिए?
भगवान विष्णु को पूजा पाठ की सभी सामग्री अर्पित करने के बाद एकादशी की कथा का पठन करें और उसके बाद ओउम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। सबसे अंत में श्रीहरि की आरती करने के बाद पूजा का समापन करें। पूरे दिन सच्ची श्रद्धा के साथ व्रत करके शाम के पहर में स्नान करके फिर से भगवान की पूजा करें। अगले दिन द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करें।
एकादशी का व्रत गलती से टूट जाए तो क्या करें?
यदि कभी भूलवश कोई भी (निर्जला एकादशी को छोड़कर) एकादशी का व्रत टूट जाए तो सबसे पहले स्नान करें और उसके बाद भगवान श्री विष्णु के चरणों को स्पर्श करके जाने-अनजाने हुई इस गलती की माफी मांगे एकादशी व्रत टूटने के कारण लगे दोष को दूर करने के लिए तुलसी की माला से भगवान श्री विष्णु के 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र का कम से कम 11 माला जप करें.
एकादशी का व्रत कैसे खोला जाता है?
ऐसे में द्वादशी तिथि पर सबसे पहले स्नान के बाद विष्णु जी की विधि विधान से पूजा करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें और फिर पानी पीकर व्रत खोलें. निर्जला एकादशी का व्रत पानी पीकर खोलना चाहिए, और बाकी सभी एकादशी को फल से, पानी से या फिर मिठाई से (जो शुद्ध देशी घी से घर पर बनी हो) फिर पूजा में चढ़ाए रसीले फल जरुर खाएं.
एकादशी व्रत के क्या फायदे हैं ?
- व्यक्ति जीवन भर निरोगी रहता है,
- राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है,
- सभी पापों का नाश होता है, संकटों से मुक्ति मिलती है, सर्वकार्य सिद्ध होते हैं,
- सौभाग्य प्राप्त होता है,
- मोक्ष मिलता है,
- विवाह बाधा समाप्त होती है,
- धन और समृद्धि आती है,
- शांति मिलती है,
- मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है,
- हर प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं,
- खुशियां मिलती हैं,
- सिद्धि प्राप्त होती है,
- उपद्रव शांत होते हैं,
- दरिद्रता दूर होती है,
- खोया हुआ सबकुछ फिर से प्राप्त हो जाता है,
- पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है,
- भाग्य जाग्रत होता है,
- ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,
- पुत्र प्राप्ति होती है एवम परिवार में शांति होती हैं।
- शत्रुओं का नाश होता है,
- सभी रोगों का नाश होता है,
- कीर्ति और प्रसिद्धि प्राप्त होती है,
- वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और हर कार्य में सफलता मिलती है।
एकादशी का उद्यापन कैसे करें ?
एकादशी व्रत के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए. पूजन कितना भी बड़ा या छोटा हो सभी व्रतियों को श्रद्धा के साथ इसे करना चाहिए. एकादशी व्रत का उद्यापन किसी योग्य आचार्य के मार्गदर्शन में करना चाहिए. उद्यापन में 12 माह की एकादशियों के निमित्त 12 ब्राह्मणों को पत्नी सहित निमंत्रित किया जाता है. उद्यापन पूजा में तांबे के कलश में चावल भरकर रखें. अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है. पूजन के बाद हवन होता है और सभी ब्राह्मणों को फलाहारी भोजन करवाकर वस्त्र,दान आदि दिया जाता है
क्यों करना जरूरी है उद्यापन ?
किसी भी व्रत की पूर्णता तभी मानी जाती है जब विधि-विधान से उसका उद्यापन किया जाए, उद्यापन करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि हम जो व्रत करते हैं उसके साक्षी तमाम देवी-देवता, यक्ष, नाग आदि होते हैं, ऐसे में उद्यापन के दौरान की जाने वाली पूजा और हवन से उन सभी देवी-देवताओं को उनका भाग प्राप्त होता है, इस दौरान किए जाने वाले दान-दक्षिणा से व्रत की पूर्णता होती है और मन इच्छा का फल मिलता है.
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लेखक की और से :-
प्रिय पाठकों अगर आपने ये ब्लॉग पूरा पढ़ा है तो में उम्मीद करता हूं कि आपको एकादशी व्रत के संबंध में आपके सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे। मेने इस ब्लॉग पर एकादशी व्रत की संक्षिप्त रूप में सटीक और सही जानकारी देने की पूरी कोशिश की है। मेने इस ब्लॉग में वो ही जानकारी दी है जो इस व्रत के लिए जरूरी थी। वैसे तो इस व्रत के अनेकों नियम होते है। पर हम उन सभी नियमो को फॉलो नही कर सकते। इसलिए इस ब्लॉग में मेने इतनी ही जानकारी दी है। जितनी इस व्रत के लिए जरूरी हैं । और जिसे हर कोई फॉलो कर सकेगे। और अपने एकादशी व्रत को सही तरीके से पूर्ण करके भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे।
तो दोस्तो आज की कथा में बस इतना ही, चलिए मिलते है। फिर से एक नई कथा के साथ तब तक आप सभी को जय श्री राधे कृष्णा और राम राम जी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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