कामदा एकादशी व्रत कथा! Kamda Ekadashi vrat Katha.

कामदा एकादशी व्रत कथा। Kamda Ekadashi Vrat Katha.


कामदा एकादशी व्रत कथा। Kamda Ekadashi Vrat Katha.
कामदा एकादशी व्रत कथा। Kamda Ekadashi Vrat Katha.


प्रिय पाठकों
आप सभी का स्वागत है। मेरे ब्लॉग All Hindi Story पर। और आप पढ़ रहे हैं कामदा एकादशी व्रत कथा। 26 एकादशी व्रत में कामदा एकादशी  का भी अपना अलग महत्व है। ये एकादशी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में ( रामनवमी के एक दिन बाद में ) आती है। और इसे ही कामदा एकादशी  के नाम से जाना जाता है। कामदा एकादशी व्रत के पुण्य के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की शुरूआत होती है। और आज इस ब्लॉग में हम कामदा एकादशी से जुड़ी हुई पौराणिक कथा को जानेंगे। तो चलिए शुरू करते है कामदा एकादशी व्रत कथा।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


कामदा एकादशी व्रत का महत्व 
कामदा एकादशी व्रत का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और सपत्नीक इस व्रत को करने से एक अखंड सौभाग्यवती होने का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से घर से बुरी शक्तियों का प्रभाव नष्ट हो जाता है और सुख शांति बनी रहती है। कामदा एकादशी व्रत का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और सुहागिनों द्वारा इस व्रत को करने से एक मात्र सौभाग्यवती होने का फल प्राप्त होता है।

कामदा एकादशी व्रत कथा। Kamda Ekadashi Vrat Katha.


धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे: हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमन करता हूँ। आपने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात पापमोचनी एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि एवं महात्म्य क्या है?


भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे धर्मराज! चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक समय की बात है, यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने बतलाया, वही मैं तुमको भी बताता हूँ।


प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। और उसी नगर में एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में घनिष्ट प्रेम था, यहाँ तक कि जब कुछ समय भी एक दूसरे को नही देखते तो दोनों व्याकुल हो जाते थे।


एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। इसलिए में तुझे श्राप देता हु की तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग।


पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएँ अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।


जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती।


एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।


उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले: हे देवी! तुम कौन हो और यहाँ किस प्रयोजन से आई हो? ‍


ललिता बोली: हे महामुनि! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए।


श्रृंगी ऋषि बोले: हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। और उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को अर्पित कर दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।


मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को अर्पित करती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी: हे करूणानिधान! मैंने जो यह एकादशी व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए और वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए।


एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।


वशिष्ठ मुनि कहने लगे: हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।


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"कामदा एकादशी व्रत कथा" पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।


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