पौराणिक प्रेम कथा :- कौन थी सत्यवती? कैसे हुआ था सत्यवती का जन्म ?

पौराणिक प्रेम कथा :- कौन थी सत्यवती? कैसे हुआ था सत्यवती का जन्म ?


Mythological love story :- Who was Satyavati? How was Satyavati born?

पौराणिक प्रेम कथा :- कौन थी सत्यवती? कैसे हुआ था सत्यवती का जन्म ?
पौराणिक प्रेम कथा :- कौन थी सत्यवती? कैसे हुआ था सत्यवती का जन्म ?

प्रिय पाठकों 

पौराणिक प्रेम कथाओं की सीरीज में आज की कहानी हैं "पौराणिक प्रेम कथा :- कौन थी सत्यवती? कैसे हुआ था सत्यवती का जन्म ?" पौराणिक प्रेम कथाएं भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और वे हमारी संस्कृति, नैतिकता और राष्ट्रीय धार्मिक भावनाओं को प्रतिष्ठित करती हैं। इन पौराणिक प्रेम कथाओं का इतिहास बहुत पुराना है और इन्हें लोग पीढ़ी से पीढ़ी तक आदि रचनाओं और पौराणिक कथाओं के रूप में पढ़ते आए हैं। इन कथाओं में प्रेम के विभिन्न पहलुओं, रोमांचक घटनाओं, नायिकाओं और नायकों के चरित्र विकास के माध्यम से विभिन्न संदेश और सिद्धांतों की प्रस्तुति की गई है।


जिसमें से कुछ प्रसिद्ध पौराणिक प्रेम कथाएं जिसे आप यहां "पौराणिक कथाओं का महा संग्रह" से पढ़ सकते हैं। इसमें सभी प्रमुख पौराणिक प्रेम कथाओं के उल्लेख की सूची हैं। इसके अलावा भी बहुत सारी प्रेम कथाएं हैं जो भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध हैं। ये कथाएं विभिन्न पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त होती हैं और अलग-अलग प्रेम कहानियों को आधार बनाती हैं। तो चलिए शुरू करते हैं आज की प्रेम कथा


पौराणिक प्रेम कथा :- कौन थी सत्यवती? कैसे हुआ था सत्यवती का जन्म ?


Mythological love story :- Who was Satyavati ? How was Satyavati born ?


महाभारत के अन्तर्गत सत्यवती की कथा बहुत दिलचस्प है। सत्यवती की जन्म कहानी बहुत ही विचित्र हैं। और उसका पूरा जीवन भी अनेक विचित्रताओ से भरा हुआ है। सत्यवती  कुरु वंश के शासक राजा शांतनु की पत्नी और पांडवों और कौरवों की परदादी थी। सत्यवती का परिवार कुछ इस प्रकार था।


सत्यवती का परिवार

पिता - चेदी के राजा वसु। इनको उपरिचर भी कहते थे। मां - अद्रिका (श्राप के कारण मछली बनी एक अप्सरा)! पालक पिता - दाशराज (एक मछुआरा प्रमुख) ! भाई - राजा मत्स्य थे ! पति - कुरु वंश के शासक राजा शांतनु थे ! पुत्र - व्यास (पाराशर से उत्पन्न पुत्र), चित्रांगद, और विचित्रवीर्य (शांतनु से उत्पन्न पुत्र)। पौत्र - धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर। परपोते - पांडव और कौरव। तो यह था, सत्यवती का परिवार।


सत्यवती के पूर्व जन्म का रहस्य

अपने पिछले जन्म में सत्यवती कौन थीं? सत्यवती अपने पिछले जन्म में अच्छोदा नामक एक दिव्य अप्सरा थीं। वो बर्हिषद पितरों के कुल से उत्पन्न हुई थी। जब वो घोर तपस्या करने लगी तो उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर पितर उसके सामने आए। तब वो उनमें से अमावसु नामक एक पितर की ओर आकर्षित हो गई। यह बात पितर लोग जान गये। और रूष्ठ होकर उन्होंने अच्छोदा को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। उन्होंने अच्छोदा से कहा कि राजा शांतनु से विवाह करने और दो बेटों को जन्म देने के बाद उसको इस शाप से मुक्ति मिलेगी। वे भगवान विष्णु के एक अवतार को भी जन्म देगी। पृथ्वी पर अपना वास पूरा करने के बाद, सत्यवती पितृलोक लौट गई। अब उन्हें अष्टका के रूप में पूजा जाता है।


सत्यवती का जन्म कैसे हुआ

वसु नामक एक राजा थे। वे मोक्ष प्राप्त करना चाहते थे और इसके लिए तपस्या करने लगे। तपस्या से प्रसन्न होकर इंद्र ने उन्हें वापस आने और चेदी के राजा के रूप में पदभार संभालने के लिए राजी कराया। उस समय तक, वसु ने बहुत आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर ली थी। इंद्र ने उन्हें एक विमान (रथ जो उड़ सकता है) और वैजयंती-माला भी भेंट की। विमान में वे अपने पूरे राज्य के ऊपर चलते थे और देखते थे कि क्या हो रहा है। इस वजह से वे उपरिचर के नाम से भी जाने जाते थे।


फिर कुछ समय पत्चात राजा वसु ने गिरिका से विवाह किया। अपनी पत्नी के साथ समागम से पहले ही राज्य के एक दूर के हिस्से पर जंगली जानवरों ने हमला कर दिया। राजा को उनका शिकार करने के लिए अचानक जंगल में जाना पड़ा। दूर होते हुए भी उनका मन गिरिका के विचारों से भरा हुआ था। जैसे वे पत्नी के साथ अपने समागम की कल्पना करते गये, वैसे ही उनका वीर्य बाहर आ गया।


उस समय के लोग नर-नारी के मिलन का उद्देश्य मुख्य रूप से प्रजनन के लिए ही समझते थे। वेदों के अनुसार वीर्य पूरे शरीर और आत्मा का सार है। राजा वसु नहीं चाहते थे कि उनका वीर्य व्यर्थ हो जाए। इसलिए उन्होंने अपने वीर्य को एक पेड़ के पत्ते के प्याले में रखा और एक बाज को बुलाकर उसे अपनी रानी के पास ले जाने के लिए कहा। राजा चाहते थे कि रानी उस वीर्य द्वारा गर्भधारण कर लें। आपको पता ही होगा, ऋषि भारद्वाज ने भी एक पत्ते के प्याले में अपना वीर्य एकत्र किया था जो एक अप्सरा को देखने पर निकल गया था। इससे ही द्रोणाचार्य का जन्म हुआ।


बाज पत्ती के प्याले को लेकर राजधानी की ओर ले गया। रास्ते में एक अन्य बाज ने उसे देखा और सोचा कि वह कुछ खाना ले जा रहा होगा। वे दोनों मध्य आकाश में लड़ने लगे। जिससे वीर्य का प्याला नीचे नदी में गिर गया।


ब्रह्मा जी ने आद्रिका नामक अप्सरा को मछली बनने का श्राप दिया था। वह नीचे नदी में ही रहती थी और वीर्य का प्याला भी उसके ठीक सामने आ गिरा। उसने उस वीर्य को निगल लिया और गर्भवती हो गई। जब अद्रिका (मछली) ने गर्भावस्था के दस महीने पूरे हो गए तब वह मछुआरों के जाल में फंस गई। जब उन्होंने उसे काटा तो अंदर दो बच्चे मिले, एक लड़का और एक लड़की। वह कन्या थी सत्यवती।


मछुआरे जुड़वा बच्चों को राजा वसु के पास ले गए। राजा ने पहचान लिया कि वे उनके ही बच्चे थे। उन्होंने लड़के को स्वीकार कर लिया और मछुआरों के प्रमुख (दाशराज) से कहा कि वह उस लड़की को अपनी बेटी के रूप में पाले।


राजा वसु ने ऐसा क्यों किया?

राजा वसु के पास महान आध्यात्मिक शक्ति थी जिसे उन्होंने तप और इंद्र के आशीर्वाद से पाया था। वे अपने महल में बैठकर तीनों लोकों में जो कुछ हो रहा था, उसे देख सकते थे। वे भूत, वर्तमान और भविष्य को जानते थे। जैसे ही उन्होंने लड़की को देखा, समझ गये कि यह कोई और नहीं बल्कि अच्छोदा का पुनर्जन्म है। उसे भगवान विष्णु के एक अवतार को जन्म देना है। जिस रहस्यमय तरीके से यह होना है, वह तभी हो सकता है जब उसे मछुआरों के बीच एक साधारण लड़की के रूप में पाला जाए।


सत्यवती का नाम मत्स्यगंधा कैसे पड़ा?

चूंकि वह एक मछली के गर्भ से पैदा हुई थी, इसलिए उसके शरीर से मछली का गंध आती था। जिसके कारण लोग सत्यवती को मत्स्यगंधा कहने लगे थे।


ऋषि पराशर और सत्यवती का मिलन

कथा के अनुसार द्वापर युग में ब्रह्मज्ञानी ऋषि शक्तिमुनि और माता अद्यश्यंती के पुत्र पराशर नाम के एक ऋषि हुआ करते थे। वो बहुत विद्वान और योग सिद्धि संपन्न प्रसिद्ध ऋषि थे। सत्यवती यमुना नदी के किनारे मछुआरों के बीच पली-बढ़ी। वह लोगों को नदी पार कराकर उनकी मदद भी करती थी।


कहा जाता है की ऋषि पराशर एक दिन यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए। भाग्यवश उस दिन वह नाव मछुआरे धीवर की जगह उसकी पुत्री सत्यवती चला रही थी। निषाद पुत्री सत्यवती देखने में बहुत ही सुंदर थी। ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर उसपर मोहित हो गए।


उन्होंने निषाद कन्या सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई। लेकिन सत्यवती ने मना कर दिया और कहा कि यह तो धर्म के विरुद्ध है। विवाह से पहले में ऐसा अनैतिक काम नहीं करुँगी। पराशर ऋषि नहीं माने और उससे बार बार प्यार करने का निवेदन करने लगे। अंत में सत्यवती ऋषि पराशर से सबंध बनाने को तैयार हुई।सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रखीं।


क्या थी तीन शर्तें

पहली यह कि उन्हें संबंध बनाते हुए कोई नहीं देखे। ऐसे में तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम द्वीप बना दिया जहाँ उन दोनों के सिवा तीसरा कोई नहीं था।

दूसरी शर्त यह कि उनकी कौमार्यता संबंध के बाद भी किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। ऐसे में ऋषि ने आश्वासन दिया कि संतान के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी।


तीसरी शर्त यह कि वह चाहती है कि उसकी मछली जैसी दुर्गंध मनमोहक सुगंध में बदल जाए। तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर एक सुगंध का वातावरण निर्मित कर दिया। जिसे कि कई मील दूर से भी महसूस किया जा सकता था। सभी शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में ही सम्बन्ध बनाये। सत्यवती ने तुरंत अपनी गर्भावस्था पूरी की और नदी के बीच में एक द्वीप में बच्चे को जन्म दिया। 


बच्चा (व्यास जी) भी तुरंत बड़ा हो गया और वयस्क बन गया।एक तोफे के रूप में, मुनि ने सत्यवती के शरीर के मछली के गंध को एक सुगंध में बदल दिया जिसे एक योजन दूर से महसूस किया जा सकता था। इसके बाद, सत्यवती को लोग योजनागंधा, गंधवती और गंधकाली इन नामों से पुकारने लगे।सत्यवती अपने परिवार के साथ एक कुंआरी के रूप में ही रहती रही।


सत्यवती ने शांतनु से किया विवाह

शांतनु की पत्नी गंगा ने उनके पास उन दोनों के पुत्र भीष्म को छोड़कर चली गयी थी। शांतनु ने एक बार सत्यवती को यमुना के तट पर देखा और उसे पसंद किया। शांतनु विवाह में उसका हाथ मांगकर दाशराज के पास पहुंचा।

दाशराज ने कहा - मुझे ऐसा करने में खुशी ही है, लेकिन मेरी एक शर्त है। आपके बाद, मेरी बेटी का बेटा ही राज करेगा।शांतनु दशराज की शर्त सुनकर दुखी होकर वापस चले गये। वे भीष्म को कैसे हटा सकते हैं? राज्य पर भीष्म का ही अधिकार था। शांतनु के मन में एक तरफ भीष्म थे और दूसरी तरफ सत्यवती का प्रेम और इसी उलझन में वो हमेशा निराश रहते थे। आखिरकार भीष्म को अपने पिता की उलझन का पता चल ही गया।


और जब भीष्म ने अपने पिता को दयनीय स्थिति में देखा तो वे सिंहासन पर अपना अधिकार छोड़ने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने जाकर दाशराज से मुलाकात की।


दाशराज ने भीष्म से कहा - सत्यवती वास्तव में राजर्षि वसु की पुत्री है। उन्होंने ही मुझे बताया है कि कुरु राजा शांतनु के अलावा कोई भी उसके लिए योग्य पति नहीं हो सकता। लेकिन उनका पहले से ही एक बेटा है जो आप हैं। सत्यवती के पुत्र कभी भी खुद को आपसे बेहतर साबित नहीं कर पाएंगे। आपसे बेहतर कोई नहीं है। फिर उनका भविष्य क्या होगा?


भीष्म ने सबके सामने घोषणा की कि सत्यवती का पुत्र हस्तिनापुर का भावी राजा होगा। दाशराज बोले मुझे आप पर भरोसा है। आप का वचन अटल रहेगा। लेकिन आपके बेटों का क्या? क्या होगा अगर वे सिंहासन के लिए दावा करते हैं तो? उस समय भीष्म ने अपना प्रसिद्ध शपथ किया - मैं जीवन भर ब्रह्मचारी रहूंगा। मैं कभी विवाह नहीं करूंगा। भीष्म स्वयं सत्यवती (अपनी होने वाली माँ) को अपने रथ में हस्तिनापुर ले गए। सत्यवती और शांतनु का विवाह हुआ।


और उसके बाद सत्यवती के दो पुत्र थे - चित्रांगद और विचित्रवीर्य। शांतनु के बाद चित्रांगद राजा बने। भीष्म के मार्गदर्शन में उन्होंने कई राजाओं को हराया और अपने राज्य का विस्तार किया। एक गंधर्व ने चित्रांगद को युद्ध के लिए चुनौती दी। वे कुरुक्षेत्र में तीन साल तक लड़े और चित्रांगद मारे गए। विचित्रवीर्य जो अभी बहुत छोटा था अब उसको राजा बना दिया गया। भीष्म ने ही सत्यवती के समर्थन से उनकी ओर से शासन किया।


काशी के राजा की तीन बेटियाँ थीं - अंबा, अंबिका और अंबालिका। उनके स्वयंवर का आयोजन किया गया था। भीष्म उन्हें अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए बलपूर्वक दुल्हन के रूप में ले आए। क्षत्रिय-धर्म में इसकी अनुमति थी। अंबा वापस चली गई। अंबिका और अंबालिका रुकी रही। सात साल बाद विचित्रवीर्य की तपेदिक से मृत्यु हो गई।


कुरु-वंश पर संकट आ गया। सत्यवती के दोनों पुत्र निःसंतान मर चुके हैं। भीष्म ने विवाह न करने का प्रण लिया है। सत्यवती ने भीष्म को राजा बनने और अपने भाई की पत्नियों को अपनी रानियों के रूप में लेने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की। भीष्म नहीं माने। सत्यवती ने भीष्म को बताया कि पराशर मुनि से उनका एक और पुत्र है। किसका नाम है कृष्णद्वैपायन और यही बालक आगे चलकर वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जिसने महाभारत की रचना की।


व्यास नी ने अपने जन्म के समय ही वादा किया था कि जब भी उनकी मां उन्हें याद करेंगी तो वे उनके पास आएंगे। सत्यवती ने व्यास जी को याद किया और वे प्रकट हुए। सत्यवती ने व्यास जी को वंश की निरंतरता के लिए विचित्रवीर्य की पत्नियों में से किसी एक को गर्भवती करने के लिए मना लिया। और इस काल में इस प्रकार से संबंध बनाने को ही नियोग कहते थें।


बाद में सत्यवती ने अंबिका को मना लिया। जब व्यास जी अंबिका के साथ संभोग किया, तो उसने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली थीं। व्यास जी का रूप भयावह था। इस वजह से उसका बेटा (धृतराष्ट्र) अंधा पैदा होगा।

जब व्यास जी ने सत्यवती को यह बताया, तो उन्होंने उसे अंबालिका को गर्भवती करने के लिए कहा। व्यास जी को देखते ही अंबालिका डर के मारे पीली पड़ गई। उसका पुत्र (पांडु) पीला पैदा हुआ था।


धृतराष्ट्र के जन्म के बाद, सत्यवती ने व्यास जी से अंबिका को फिर से गर्भवती करने के लिए कहा। अंबिका ने उसकी जगह अपनी दासी को व्यास जी के पास भेज दिया। इनके मिलन से उत्पन्न हुए पुत्र का नाम था विदुर रखा गया


सत्यवती का आगे क्या हुआ?

पांडु के दाह संस्कार के बाद, व्यास जी ने सत्यवती को बताया कि कुरु-वंश के लिए आगे क्या है। वे दर्द सहन नहीं कर पाएंगी। उन्हें जंगल में जाकर ध्यान और योग करना चाहिए। सत्यवती ने अंबिका से कहा कि उसके पोते (कौरव) कुरु-वंश के विनाश का कारण बनेंगे। वे अंबालिका को लेकर वन जा रही थीं। पर उनके साथ अंबिका भी निकल गयी।


तीनों ने अपना शेष जीवन जंगल में बिताया। मृत्यु के बाद, सत्यवती वापस पितृलोक चली गई जहाँ से वह आई थी। सत्यवती की बहुओं (अंबिका और अंबालिका) ने स्वर्गलोक को प्राप्त किया।


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