दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा ! Love story of Dushyant and Shakuntala.

दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा


Love story of Dushyant and Shakuntala.



Dushyant Our Shakuntala Ki Poranik Prem katha.
Dushyant Our Shakuntala Ki Poranik Prem katha.

प्रिय पाठकों 
पौराणिक प्रेम कथाएं भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और वे हमारी संस्कृति, नैतिकता और राष्ट्रीय धार्मिक भावनाओं को प्रतिष्ठित करती हैं। इन पौराणिक प्रेम कथाओं का इतिहास बहुत पुराना है और इन्हें लोग पीढ़ी से पीढ़ी तक आदि रचनाओं और पौराणिक कथाओं के रूप में पढ़ते आए हैं। इन कथाओं में प्रेम के विभिन्न पहलुओं, रोमांचक घटनाओं, नायिकाओं और नायकों के चरित्र विकास के माध्यम से विभिन्न संदेश और सिद्धांतों की प्रस्तुति की गई है। जिसमें से कुछ प्रसिद्ध पौराणिक प्रेम कथाएं आप यहां से "पौराणिक कथाओं का महा संग्रह" पढ़ सकते हैं। इनमे सभी प्रमुख पौराणिक प्रेम कथाओं का उल्लेख किया गया है।  

इसके अलावा भी बहुत सारी प्रेम कथाएं हैं जो भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध हैं। ये कथाएं विभिन्न पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त होती हैं और अलग-अलग प्रेम कहानियों को आधार बनाती हैं।

दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा

Love story of Dushyant and Shakuntala.


दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा का प्रमाण – 


राजा दुष्यंत और शंकुतला की इस प्रेम कथा का वर्णन रामायण के बालकाण्ड और महाभारत के आदिपर्व में मिलता हैं. यह कथा एक पौराणिक प्रेम कथा हैं. राजा दुष्यंत को शकुंतला से प्रेम होता हैं, फिर शकुंतला को एक शाप लग जाता हैं, और राजा दुष्यंत शकुंतला को भूल जाते हैं. लेकिन फिर वापस एक संयोग से राजा दुष्यंत को सब कुछ याद आ जाता हैं. और फिर सब कुछ सामान्य हो जाता हैं. तो चलिए शुरू करते हैं इस पौराणिक प्रेम कथा को, अगर अच्छी लगे तो हमारी दूसरी कहानियां भी पढ़ सकते हैं.

महर्षि विश्वामित्र जन्म से एक ब्राह्मण नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने तप और उग्र तपस्या के बल, लगभग 1000 वर्षो की तपस्या के पश्चात ऋषि होने का वर(वरदान) प्राप्त कर लिया. लेकिन विश्वामित्र ब्रह्मा-ऋषि बनना चाहते थे. इसलिए पुष्कर के तट पर जाकर पुन: तपस्या शुरू कर दी. ऋषि विश्वामित्र की इस कठोर तपस्या से राजा इंद्र विचार में पड़ गए. इंद्र देव को डर था की कहीं विश्वामित्र इन्द्रासन नहीं मांग ले. यह विचार कर तपस्या भंग करने के लिए अपनी अप्सरा मेनका को एक कन्या के रूप में धरती पर भेजा.


विश्वामित्र और मेनका का मिलन

नित्य की भांति ऋषि विश्वामित्र अपने दैनिक कार्यो में लगे हुए थे. तभी पुष्कर सर के तट पर मेनका नहा रही थी. मेनका का बदन देखकर विश्वामित्र को काम का मोह हो गया और मेनका से परिचय किया. विश्वामित्र ने मेनका को अपने साथ कुटिया में रहने का निमंत्रण दिया. अप्सरा मेनका ने ऋषि विश्वामित्र को काम-पाश में बांध लिया और उनके साथ कुटीया में रहने लगी.
विश्वामित्र और मेनका दस वर्षो तक साथ रहे, इसके दौरान दोनों के संयोग से एक पुत्री हुई. विश्वमित्र को महसूस हुआ की उनकी तपस्या तो भंग हो गई, उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों से पता लगाया की ये सब देवताओं का किया कराया हैं.


ऋषि विश्वामित्र के गुस्से से मेनका कांपने लगी. लेकिन विश्वामित्र ने मेनका पर कोई क्रोध नहीं किया और उसको वहां से जाने को कह दिया. महर्षि विश्वामित्र ने काम पर विजय प्राप्त करने के लिए कामदेव की तपस्या करने का निश्चय किया. इसके लिए विश्वामित्र ने अपनी पुत्री को ऋषि कण्व के आश्रम पर छोड़ दिया. और स्वयं उतर में कोशी नदी के किनारे जाकर तपस्या करने लगे.


आप पढ़ रहे हैं! दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा


अगले दिन जब ऋषि कण्व ने एक कन्या को शकुओ से रक्षा करते हुए देखा, तो उन्होंने उस कन्या को उठा लिया और उसका पालन पोषण करने का निश्चय किया. शकुओ के पास मिलने के कारण उसका नाम शकुंतला रख दिया.समय रहते शकुंतला युवती हो गई, और एक दिन सखियों के साथ पुष्प बीनने के लिए गयी हुई थी. तभी पुरु वंश के राजा दुष्यंत एक दौरे के लिए वहां से गुजर रहे थे, शकुंतला को देखते ही उससे मिलने का मन बनाया. कश्यप गोत्रीय शकुंतला का पीछा करते हुए रजा दुष्यंत ऋषि कण्व के आश्रम पहुँच गये. वहां जाकर आवाज़ लगाई, और वहां विश्राम करने का निवेदन किया. जब राजा दुष्यंत ने पुन: शकुंतला को देखा तो कहा हे कुमारी! तुम्हारा रूप अनुपम हैं, मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ.


कुमारी शकुंतला ने कहा मेरे पिता कण्व अभी यहाँ नहीं हैं, जब वो आ जायेंगे तब उनकी अनुमति से आपसे विवाह कर सकती हूँ. शकुंतला ने एक शर्त रखी की हमसे जो पुत्र होगा आप उसको सम्राट घोषित करेंगे. राजा दुष्यंत ने उनकी बात मान ली. राजा दुष्यंत ने कहा की महर्षि कण्व तो अखंड बह्राम्चारी हैं फिर वो तुम्हारे पिता कैसे हुए. शकुंतला ने बताया की उनके पिता विश्वामित्र हैं जो तपस्या कर रहे हैं और मेरी माँ देवलोकीय अप्सरा हैं. जन्म से ही ऋषि कण्व ने ही मेरा पालन पोषण किया, अत: वो ही मेरे पिता हैं. राजा दुष्यंत ने शकुंतला को बताया कि तुम एक ब्राह्मण नही, राजकन्या हो, और हम गंधर्व विवाह कर सकते हैं. तुम अपने आपको को मुझे दान कर दो.


शकुंतला का राजा दुष्यंत के साथ विवाह


राजा दुष्यंत के निवेदन पर शकुंतला ने विवाह कर, समागम कर लिया. कुछ समय पश्चात राजा दुष्यंत शकुंतला को धिलाषा देते हुए कहा कि मैं शीघ्र ही तूमको यहाँ से लेकर जाऊंगा. शकुंतला को अपनी एक अंगूठी देकर वहां से चले गए. जब महर्षि कण्व आश्रम आये तो शकुंतला अपने पिता को सब-कुछ बताने से डर रही थी. ऋषि कण्व ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ जान लिया, और मुस्कराते हुए कहा बेटी, तुमने कोई गलत काम नहीं किया है. राजा दुष्यंत एक अत्यंत शक्तिशाली राजा हैं, और तुम दोनों से जो पुत्र पैदा होगा.


महर्षि दुर्वाशा का शकुंतला को श्राप

वो इस बड़ा ही तेज और बलवान होगा. एक दिन महर्षि दुर्वाशा अपने मित्र कण्व से मिलने आये, उस वक्त कण्व वहां मौजुद नहीं थे. आश्रम के द्वार पर शकुंतला राजा दुष्यंत के बारे सोच रही थी. महर्षि दुर्वाशा के कहने पर भी शकुंतला का ध्यान नहीं टुटा. तब महर्षि दुर्वाशा ने दुष्ट तपसी कहकर, अथिति के अनादर करने के कारण शकुंतला को शाप दे दिया, हे नारी तुम इस काल में जिसका स्मरण कर रही हो वह भी तुमको भूल जायेगा.

आप पढ़ रहे हैं ! दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा

तब अचानक शकुंतला का ध्यान टुटा, सखियों के समझाने पर दुर्वाशा ने कहा की अगर वह अपने प्रियतम को अपनी कोई खास वस्तु(तोहफा) दिखाएगी, तो उसको सब कुछ याद आ जायेगा. एक दिन कण्व ऋषि ने शकुंतला को कहा कि अब तुमको अपने पति के पास जाना चाहिए. विवाहित स्त्री का इस तरह रहना कीर्ति और धर्म का घातक अपमान हैं. शकुंतला अपनी माँ समान दासी गौतमी के साथ हस्तिनापुर के लिए निकल गयी.


शकुंतला की अंगूठी का खोना


रास्ते में गंगा से पानी पिने के लिए जैसे ही शकुंतला ने अपनी अंजलि भरी तो असकी अंगूठी पानी अन्दर गिर गयी, लिकिन उसको इसका पता नहीं चला. जब शकुंतला हस्तिनापुर पहुंची तो उसने स्वयं को उनकी पत्नी बताते हुए कहा, आपके राज्य का सम्राट उनकी कोख में पल रहा हैं. तब राजा दुष्यंत ने तापसी स्त्री कहते हुए शकुंतला का तिरस्कार किया. तब गौतमी ने कहा कि तुम इनको अपनी अंगूठी दिखाओ. शकुंतला ने अपनी अंगूठी ढूंढने की कोशिश की लेकिन, उसको नहीं मिली.


तब राजा दुष्यंत ने उसको वहां से जाने को कहा. गौतमी ने कहा कि हम वापस ऋषि कण्व के आश्रम लौट चलते हैं. लेकिन एक दास ने कहा की हम शकुंतला को यहीं पर छोड़कर चलेंगे. इतना कहकर दासी लोग वहां से निकल दिए. राजा दुष्यंत का महामंत्री ने शकुंतला के प्रसव तक उसको अपने आश्रम पर ठहरने का निवेदन किया. शकुंतला की अनुमति के साथ दोनों आश्रम की तरफ निकल पड़े. रास्ते में शकुंतला की माता मेनका प्रकट हुई और शकुंतला को अपने साथ लेकर अदृश्य हो गई. मेनका शकुंतला को लेकर ऋषि मारीच के आश्रम गयी


और उसको वहां छोड़कर वापस स्वर्गलोक चली गई. एक दिन राजा के कर्मचारियों ने एक मछुआरे को राजा की अंगूठी चुराने के जुर्म में गिरफ्तार किया, और राजा के सामने पेश किया, मछुआरे ने राजा से विनती की कि महाराज ये अंगूठी मुझे प्रात: काल एक मछली के पेट से मिली. राजा दुष्यंत उस अंगूठी देखकर सब कुछ जान गये, और उनको अपनी भूल और शकुंतला के तिरस्कार करने का अफ़सोस हुआ. राजा दुष्यंत ने अपने मंत्री को बुलाया और शकुंतला का पता पूछा.

आप पढ़ रहे हैं ! दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा

मेनका के साथ अदृश्य होने की बात सुनकर राजा दुखी हो गये. लगभग छ साल बित चुके थे. एक दिन भगवान् इंद्र का दूत राजा दुष्यंत के दरबार में आया और दानवो के खिलाफ युद्ध में देवताओ की सहायता की करने का निवेदन किया. दानवो और देवताओ के बीच में घमासान युद्ध हुआ, देवताओ ने विजय प्राप्त की. जब दूत पुन: दुष्यंत को धरती पर छोड़ने आये तो एक अज्ञात स्थान पर छोड़ दिया. राजा दुष्यंत जंगल से होकर आगे बढ़ रहे थे.


राजा दुष्यंत ने सुना कि कोई बच्चा खेल रहा हैं, ढूंढते ढूंढते दुष्यंत उस बच्चे के पास पहुँच गए. एक बच्चा(सर्वदमन) शेर के साथ खेल रहा था, और उसका मुह खोलकर उसके दांत की गिनती कर रहा था. तब दो दासिया, उस बच्चे को आश्रम ले जाने के लिए आयी. दासियों के आग्रह पर भी वह बच्चा वहां से चलने को तैयार नहीं था. तब सर्वदमन के हाथ से जंतर गिर गया. राजा दुष्यंत ने उस जंतर को उठा लिया, और अपने साथ खलने को आग्रह किया.


दासियों ने कहा की आपको उस जंतर को नहीं छूना चाहिए, उसको छूने का अधिकार केवल इनके माता पिता को हैं. तब राजा दुष्यंत दासियों से सर्वदमन की माँ से मिलने का निवेदन किया. दासियाँ राजा दुष्यंत को शकुंतला के पास लेकर गयी. दोनों ने एक दुसरे को पहचान लिया और एक दुसरे से क्षमा मांगने लगे. तब शकुंतला ने सर्वदमन कोअपने पिता से परिचय करवाया. राजा दुष्यंत ने शकुंतला को महल चलने का प्रस्ताव रखा.


शकुंतला ने मह्रिषी मारीच की अनुमति लेने को कहा. महर्षि मारीच की अनुमति और आशीवार्द सहित तीनो हस्तिनापुर लौट जाते हैं. सर्वदमन जो कि आगे चलकर राजा भरत के नाम से प्रसिद्ध हुआ. तो यह थी राजा दुष्यंत और शकुंतला की पौराणिक प्रेम कथा।


--------------------------------------------------------------------------------------------------------


तो आज की "दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा" में इतना ही फिर मिलते है नई पौराणिक प्रेम कथा के साथ पढ़ते रहिए allhindistory.in पर पौराणिक प्रेम कथाएं।

और अगर आपके पास कोई अच्छी सी Hindi Story हैं । और आप उसे इस ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहते है तो आप हमे उस कहानी को हमारे ईमेल पते umatshrawan@gmai.com पर अपने नाम, पते और श्रेणी सहित भेज सकते हैं। अगर हमे कहानी अच्छी लगी तो हम उसे आपके नाम के साथ हमारे ब्लॉग www.allhindistory.in पर प्रकाशित करेंगे। और अगर आपका हमारे लिए कोई सुझाव है तो कांटेक्ट अस फॉर्म पर जाकर हमें भेज सकते हैं

"दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा" को पढ़ने के लिए और आपका अमूल्य समय हमें देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ