उर्वशी और पुरुरवा की पौराणिक प्रेम कथा !
उर्वशी और पुरुरवा की पौराणिक प्रेम कथा !
urvashee aur pururava kee pauraanik prem katha
प्रिय पाठकों
पौराणिक प्रेम कथाएं भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और वे हमारी संस्कृति, नैतिकता और राष्ट्रीय धार्मिक भावनाओं को प्रतिष्ठित करती हैं। इन पौराणिक प्रेम कथाओं का इतिहास बहुत पुराना है और इन्हें लोग पीढ़ी से पीढ़ी तक आदि रचनाओं और पौराणिक कथाओं के रूप में पढ़ते आए हैं। इन कथाओं में प्रेम के विभिन्न पहलुओं, रोमांचक घटनाओं, नायिकाओं और नायकों के चरित्र विकास के माध्यम से विभिन्न संदेश और सिद्धांतों की प्रस्तुति की गई है।
जिसमें से कुछ प्रसिद्ध पौराणिक प्रेम कथाएं आप यहां से "पौराणिक कथाओं का महा संग्रह" पढ़ सकते हैं। इनमे सभी प्रमुख पौराणिक प्रेम कथाओं का उल्लेख किया गया है। इनके अलावा भी बहुत सारी प्रेम कथाएं हैं जो भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध हैं। ये कथाएं विभिन्न पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त होती हैं और अलग-अलग प्रेम कहानियों को आधार बनाती हैं।
उर्वशी और पुरुरवा की पौराणिक प्रेम कथा
urvashee aur pururava kee pauraanik prem katha
कौन थी उर्वशी?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु के अवतार नर और नारायण हिमालय में तपस्या कर रहे थे। इंद्र को अपना सिंहासन खोने का डर सताने लगा। उन्होंने नर और नारायण की तपस्या भंग करने के लिए कई सुंदर अप्सराएं भेजीं। हालांकि वे नर और नारायण को मोहित नहीं कर सकीं। इसके विपरीत नारायण ने अपनी जांघ से एक नई सुंदर अप्सरा पैदा कर दी। इसी का नाम उर्वशी पड़ा। ये अप्सरा उन्होंने इंद्र को दे दी। उर्वशी ने इंद्रलोक की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए। उसकी अदाओं से इंद्र मोहित हो गए।
चंद्रवशी राजा पुरुरवा और स्वर्ग की अप्सारा उर्वशी की प्रेम कथा प्रचलित है। एक दिन उर्वशी धरती की यात्रा पर थी। धरती के वातारवण से उर्वशी मोहित हो गई। अपनी सखियों के साथ वह धरती पर कुछ समय व्यतीत करने के लिए रुक गई। उर्वशी जब पुन: स्वर्ग लौट रही थी तब रास्ते में एक राक्षस ने उसका अपहरण कर लिया।
अपहरण करते वक्त उस समय वहां से राजा पुरुरवा भी गुजर रहे थे, उन्होंने इस घटना को देखा और वे अपने रथ से राक्षस के पीछे लग गए। युद्ध करने के बाद उन्होंने राक्षस से उर्वशी को बचा लिया। यह पहली बार था जब किसी मानव ने उर्वशी को स्पर्श किया था। उर्वशी पुरुरवा की तरफ आकर्षित हो गई और पुरुरवा भी स्वर्ग की अप्सरा को अपना दिल दे बैठे।
लेकिन उर्वशी को पुन: स्वर्ग लौटना ही था। दोनों ने भरे मन से एक दूसरे को विदाई दी। जुदा होने के बाद दोनों के ही मन से एक दूसरे का खयाल निकल ही नहीं रहा था। दोनों को अब जुदाई बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
उर्वशी को श्राप
एक बार स्वर्ग में एक प्रहसन (नाटक) का आयोजन किया गया। इस प्रहसन में उर्वशी को लक्ष्मी माता का किरदार निभाना था। किरदार निभाते हुए उर्वशी ने अपने प्रियतम के तौर पर भगवान विष्णु का नाम लेने की बजाय पुरुरवा का नाम ले लिया। यह देखकर नाटक को निर्देशित कर रहे भरत मुनि को क्रोध आ गया। उन्होंने उर्वशी को शाप देते हुए कहा कि एक मानव की तरफ आकर्षित होने के कारण तुझे पृथ्वीलोक पर ही रहना पड़ेगा और मानवों की तरह संतान भी पैदा करनी होगी। यह शाप तो उर्वशी के लिए वरदान जैसा साबित हुआ। क्योंकि वह भी तो यही चाहती थी। शाप के चलते एक बार फिर उर्वशी पृथ्वीलोक आ पहुंची। फिर वह पुरुरवा से मिली और अपने प्यार का इजहार किया।
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उर्वशी की शर्त
पुरुरवा ने उर्वशी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन ऊर्वशी ने उनके सामने तीन शर्तें रख दीं। उर्वशी ने कहा कि मेरी पहली शर्त यह है कि आपको मेरी दो बकरियों की हमेशा सुरक्षा करनी होगी। दूसरी शर्त यह कि वह हमेशा घी का ही सेवन करेगी। तीसरी शर्त यह कि केवल शारीरिक संबंध बनाते वक्त ही दोनों एक-दूसरे को निर्वस्त्र देख सकते हैं। पुरुरवा ने कहा, मुझे सभी शर्त मंजूर है।
फिर पुरुवस् का विवाह उर्वशी से हुआ और वे दोनों आनंदपूर्वक साथ रहने लगे। कहते हैं कि कुछ काल के बाद र्स्वग लोक के देवताओं को दोनों की खुशी देखी नहीं गई। उर्वशी के जाते ही स्वर्ग की रौनक चली गई थी, तो वे चाहते थे कि उर्वशी पुनः स्वर्ग लौट आए। तब उन्होंने दोनों को अलग करने की चाल सोची।
देवताओं का छल
इस योजना के तहत एक रात उर्वशी की बकरियों को गंधर्वों ने चुरा ली। शर्त के मुताबिक बकरियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुरुरवा की थी। बकरियों की आवाज सुनने पर उर्वशी ने पुरुरवा से उन्हें बचाने को कहा। उस समय पुरुरवा निर्वस्त्र थे। वह जल्दबाजी में निर्वस्त्र ही बकरियों को बचाने के लिए दौड़े पड़े। इसी दौरान देवताओं ने स्वर्ग से बिजली चमका कर उजाला कर दिया और दोनों ने एक-दूसरे को निर्वस्त्र देख लिया।
इस घटना से उर्वशी शर्त टूट गई। इस शर्त के टूटते ही उर्वशी स्वर्गलोक के लिए रवाना हो गई। दोनों बेहद ही दुखी हूए। हालांकि उर्वशी अपने साथ पुरुरवा और अपने बच्चे को ले गई। कहते हैं कि बाद में उसने अपने बच्चे को पुरुरवा को सौंपने के लिए कुरुक्षेत्र के निकट बुलाया। हालांकि बाद के काल में भी उर्वशी कई घटनाक्रम की वजह से धरती पर आईं और पुरुरवा से मिलती रही जिसके चलते उनके और भी बहुत बच्चे हुए।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा उसके प्रति आकृष्ट हो गए थे जिसके चलते उसकी ताल बिगड़ गई थी। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मृत्युलोक में रहने का शाप दे दिया था।
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